सब कुछ खत्म होने के बाद भी बची रहती है धूप के भीतर की नमी पत्थरों के भीतर की हरारत रेत के भीतर उग ही आता है कोई समंदर आग की आँखों में छलक उठते हैं दो आँसू बंजर धरती पर उगती हैं उम्मीदें सब कुछ खत्म होने के बाद भी बचा रहता है इंतजार...
हिंदी समय में प्रतिभा कटियार की रचनाएँ